Anga Civilization : World's Oldest Civilization | Ang Civilisation | Anga Civilisation | Anga Civilisation | अंग सभ्यता : विश्व की प्राचीनतम सभ्यता
Anga
Civilization buried under earth of Anga Region of Jharkhand &
Bihar is World’s oldest civilization: Pandit Anup Kumar Bajpai, Noted Archaeologist, Dumka, Jharkhand.
A research book authored by Pandit Anup Kumar Bajpai | पंडित अनूप कुमार बाजपेयी रचित शोध ग्रंथ |
Angika Version | Hindi Version | English Version
Renowned archaeologist Pandit Anup Kumar Bajpai has claimed that the world's oldest civilization is buried under the "Ang Region" of Jharkhand and Bihar in Eastern India. According to his discovery "Ang Civilization" is the oldest civilization in the world. He further states that at the time of the survival of the living "Ang Civilization, the Indus Valley Civilization did not even rise.
Pandit Anup Kumar Bajpai | पंडित अनूप कुमार वाजपेयी |
According to the research conducted by him humans, animals and birds were first created in the region of the world which is presently known as the Rajmahal hills. This region is in the "Anga Region" of Jharkhand and Bihar in eastern India. These hills are the oldest among all the hills in the world.
Sharing important information with Angika.com, Pandit Anup Kumar Bajpai says, "I have found geographical and archaeological evidences, on the basis of which I am in a position to prove my points."
Summarizing certain evidences before us, Pandit Bajpai says that the first "Rajmahal" hills had ascended on the earth. The mountains of South Africa are extensions of these hills. A small stretch under Rajmahal hills in eastern India is named as Santalparganas.
According to him in the Santalparganas region, researchers have found fossils of trees in abundance and the possibility of finding them further cannot be ruled out. These fossils of the trees belong to the period when the mountains of South Africa were attached to Rajmahal hills. So far, wherever fossils of vegetation have been found, the fossils of trees and various flora of this region are the most ancient among them. When there were trees, it was quite natural that they contained fruits, seeds.
He further adds, “Apart from the fossils of vegetative seeds are buried in the place called "Katghar" under Sahibganj district of Santalpargana, they are also scattered elsewhere in this region of the earth. Fossils of several types of root vegetables have been found here”. Some of them have been collected by Pandit Anup Kumar Bajpai.
According to Pandit Bajpai, it would be completely wrong to say that there were no animals, birds, humans etc. during the period when fossils of flora have been found. Modern history books attempt to establish the fact that at that time there was a lot of carbon in the atmosphere due to which humans, animals, birds etc. did not exist. As there was no suitable atmosphere for them. That period is referred to today as the Carboniferous era.
Remains of Fossils & Clay Pots from Anga Civilization as found in Ang Region of Eastern India | |
Pandit Anup Kumar Bajpai has discovered that the rocks and hills of Santalpargana contain fossils of various types of animals, reptiles and long-limbed humans. Among them, some of the references of the hills, including images of rocks, have been mentioned and referred to in his book titled "The World's Earliest Civilization", published by the Sameeksha Publication, Delhi and Muzaffarpur.
He has also found more than 80 such places in Santalpargana where fossils related to the oldest tribes, animals etc. of the world are still contained in fossil stones. On the other hand, evidence related to fossils of human beings buried in the soil of this region has also been found.
Pandit Anup Kumar Bajpai claims, "Whatever be the concept in the history related to the creation of humans, the evidence I discovered in Santalpargana has the potential to refute them. It is also interesting to note that in a part of Santalpargana and the state of Bihar adjacent to it, is a buried human civilization. I have also found the proofs regarding the same, which have been given a place in my book, that living civilization was born before the emergence of the Indus Valley Civilization”.
He adds, "The civilization that I have discovered is, ‘Ang Civilization’. The stature of any other civilization in front of it is very tiny”. He further adds with concern , " When we talk about the beginning of the universe, if the evidences related to that period are not saved, then nothing will be found in future, because the mountains are being broken and uprooted consistently. "
झारखंड व बिहार के अंग-क्षेत्र की धरती
के नीचे दफन है अंग-सभ्यता जो
विश्व की प्राचीनतम सभ्यता भी है - पंडित अनूप कुमार वाजपेयी, प्रसिद्ध पुरात्तवविद, दुमका, झारखंड ।
प्रसिद्ध पुरातत्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने दावा किया है कि झारखंड व बिहार के "अंग क्षेत्र" की धरती के नीचे विश्व की प्राचीनतम सभ्यता दफन है । उनकी खोज के अनुसार विश्व की प्राचीनतम सभ्यता, “ अंग की सभ्यता” है । जीती जागती “अंग की सभ्यता” के वजूद के वक्त सिंधु घाटी सभ्यता का अभ्युदय भी नहीं हुआ था ।
उनके द्वारा किए गए शोध के अनुसार मानवों, पशुओं और पक्षियों की सृष्टि सर्वप्रथम विश्व के उस क्षेत्र में हुई थी जहाँ की पहाड़ियाँ राजमहल पहाड़ी के नाम से पुकारी जाती है । वह क्षेत्र है, पूर्वी भारत के झारखंड और बिहार के “अंग-क्षेत्र” में । ये पहाड़ियाँ विश्व की तमाम पहाड़ियों से सर्वाधिक प्राचीन हैं ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी अंगिका.कॉम से महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते बताते हैं, “मुझे इस बात के भौगोलिक व पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं जिनके आधारों पर मैं अपनी इस बात को प्रमाणित करने की क्षमता रखता हूँ।“
कतिपय साक्ष्यों को सारांश रूप में हमारे समक्ष रखते हुए पंडित वाजपेयी कहते हैं कि धरती पर सर्वप्रथम राजमहल पहाड़ियाँ उद्भिज हुईं थीं । इन पहाड़ियों के ही विस्तार, दक्षिण अफ्रिका के पहाड़ हैं । राजमहल पहाड़ियों के विस्तार वाले एक छोटे भाग का नाम पूर्वी भारत में है - संतालपरगना ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने बताया कि संतालपरगना क्षेत्र में शोधकर्ताओं को वृक्षों के जीवाश्म बहुतायत में मिले हैं और आगे भी इनके मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता । ये जीवाश्म तब के वृक्षों के हैं जब दक्षिण अफ्रीका के पहाड़ राजमहल की पहाड़ियों से जुड़े हुए थे । ऐसे में विश्व में अब तक जहाँ भी वनस्पतियों के जीवाश्म मिले हैं, उनमें इस क्षेत्र के पेड़ों एवं विभिन्न वनस्पतियों के जीवाश्म सर्वाधिक प्राचीन हैं । जब वृक्ष थे तब स्वाभाविक है कि उनमें फल लगते थे, बीज होते थे । बीजों की बात करें तो 6 जिलों वाला संतालपरगना के साहिबगंज जिला अन्तर्गत "कटघर" नामक स्थान पर वनस्पतियों के बीजों के जीवाश्म दबे पड़े हैं, तो दूसरी ओर धरती के ऊपर बिखरे पड़े हैं । कई प्रकार के कन्द-मूलों के जीवाश्म यहाँ पाए गए हैं । कतिपय जीवाश्म पंडित अनूप कुमार वाजपेयी द्वारा भी संग्रहित हैं ।
पंडित वाजपेयी के अनुसार, यह कहना सर्वथा गलत होगा कि जिस काल के वनस्पतियों के ये जीवाश्म हैं तब के काल में पशु ,पक्षी, मानव आदि नहीं थे । आधुनिक इतिहास की पुस्तकों में इस तथ्य को स्थापित करने का प्रयास दिखता है कि उस काल में वायुमंडल में कार्बन की मात्रा बहुत अधिक थी जिस कारण मनुष्य, पशु, पक्षी आदि नहीं थे, चूँकि उनके लिए उपयुक्त वायुमंडल नहीं था। उस काल को आज के समय "कार्बोनिफेरस एरा" नाम से संबोधित किया गया है ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने यह खोज की है कि संतालपरगना की चट्टानों और पहाड़ियों में विभिन्न प्रकार के पशुओं, सरसृपों और लम्बी कद-काठी वाले मानवों के जीवाश्म समाहित हैं । उनमें से कतिपय पहाड़ियों, चट्टानों की छवियों सहित संदर्भित बातों का उल्लेख अपनी "विश्व की प्रचीनतम सभ्यता" नामक पुस्तक में किया है , जो समीक्षा प्रकाशन, दिल्ली/ मुजफ्फरपुर से प्रकाशित है ।
पंडित वाजपेयी को संतालपरगना में एक दो नहीं बल्कि 80 से अधिक वैसे स्थल मिले हैं जहाँ आज भी संसार के प्राचीनतम आदिमानवों, पशुओं इत्यादि से संबंधित जीवाश्म पत्थरों में समाहित हैं, वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र की माटी में भी दबे हुए आदि मानवों के जीवाश्मों से संबंधित सबूत भी मिले हैं ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी यह दावे के साथ कहते हैं, “मानवों की आदि सृष्टि से संबंधित इतिहास में जो भी अवधारणा है, संतालपरगना में मेरे द्वारा खोजे गए साक्ष्य उन्हें खारिज करने की क्षमता रखते हैं । रोचक बात यह भी है कि संतालपरगना और इससे सटे बिहार राज्य के भी भाग में धरती के नीचे मानव सभ्यता दफन है, उनके भी साक्ष्यों को मैंने ढूँढ निकाला है और अपनी पुस्तक में जगह दी है । वह जीती-जागती सभ्यता तब थी, जब सिंधु घाटी सभ्यता का अभ्युदय हुआ ही नहीं था ।"
पंडित वाजपेयी बताते हैं, “जिस सभ्यता की मैंने खोज की है, वह है "अंग की सभ्यता", जिसके समक्ष किसी भी सभ्यता का कद नहीं मापा जा सकता ।"
वे चिंता जाहिर करते कहते हैं, "आदि सृष्टि के उस कालखंड से संबंधित साक्ष्यों को नहीं बचाया गया तो आने वाले काल में कुछ भी नहीं मिलेगा, क्योंकि नित्य तोड़े-उखाड़े जा रहे हैं पहाड़ ।"
Angika Version | Hindi Version | English Version
झारखंड आरू बिहार केरौ अंग-क्षेत्र के धरती तरौ मँ दफन छै "अंग-सभ्यता" जे
विश्व केरौ प्राचीनतम सभ्यता छेकै - पंडित अनूप कुमार वाजपेयी, प्रसिद्ध पुरात्तवविद, दुमका, झारखंड ।
जानलौ-मानलौ पुरातत्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी नँ दावा करलै छै कि झारखंड आरू बिहार केरौ "अंग क्षेत्र" केरौ धरती तरौ मँ दुनिया केरौ सभसँ पुरानौ सभ्यता दफन छै । हुनको शोध के अनुसार “ अंग केरौ सभ्यता” विश्व केरौ प्राचीनतम सभ्यता छेकै । जखनी “अंग के सभ्यता” अस्तित्व मँ छेलै, तखनी सिंधु घाटी सभ्यता केरौ जनम भी नै होलौ रहै ।
हुनको द्वारा करलौ गेलौ शोध के अनुसार मानव, पशु आरू पक्षी केरौ सृष्टि सर्वप्रथम दुनिया केरौ वू भाग मँ होलौ छेलै जहाँकरौ पहाड़ी “राजमहल पहाड़ी” के नाँव सँ पुकारलौ जाय छै । ई भू-भाग पूर्वी भारत केरौ झारखंड आरू बिहार केरौ “अंग-क्षेत्र” मँ छै । ई पहाड़ी सौंसे दुनिया के सब्भे पहाड़ी सभ सँ जादा प्राचीन छै ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी नँ अंगिका.कॉम सँ महत्वपूर्ण जानकारी साझा करतें बतैलकै, “हमरा ई बात केरौ भौगोलिक व पुरातात्विक साक्ष्य मिललौ छै, जेकरा आधारौ पर हम्में अपनौ ई बात क प्रमाणित करै के क्षमता रखै छियै।“
कुछ साक्ष्य के सारांश रूपौ मँ चर्चा करतें हुअय पंडित वाजपेयी जी कहै छै कि धरती पर सभसँ पहिनै राजमहल पहाड़ी आकार लेलकै । ई पहाड़ी सिनी के ही विस्तार, दक्षिण अफ्रिका के पहाड़ छेकै । राजमहल पहाड़ी के विस्तार वाला एगो छोटौ रकम भाग के नाँव पूर्वी भारत मँ छेकै - संतालपरगना ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी नँ बतैलकै कि संतालपरगना क्षेत्र मँ शोधकर्ता सिनी क गाछ-बिरिछ के जीवाश्म बहुतायत मँ मिलै छै आरू आगू भी एकरौ मिलै के संभावना सँ इंकार नै करलौ जाबै सकै छै । ई सब जीवाश्म तहियाकरौ गाछी सिनी के छै जहिय्या दक्षिण अफ्रीका के पहाड़ राजमहल केरौ पहाड़ी सभ सँ जुड़लौ छेलै । ऐसनौ मँ विश्व मँ अखनी तलक जहाँ भी वनस्पती सब के जीवाश्म मिललौ छै, ओकरा मँ “अंग क्षेत्र” के गाछ-बिरिछ आरू तरह-तरह के वनस्पतियो के जीवाश्म सभसँ जादे पुरानौ छै। जबय गाछ-बिरिछ छेलै तबय स्वाभाविक छै कि ओकरा मँ फल लगै छेलै आरू बीया भी होय छेलै । बीया के बात करलौ जाय त 6 जिला वाला संतालपरगना केरौ साहिबगंज जिला अन्तर्गत "कटघर" नाम के स्थान प वनस्पतियौ के बीया के जीवाश्म या त धरती तरौ मँ दबलौ पड़लौ छै, या फेरू धरती के उपर छिरियैलौ पड़लौ छै । तरह-तरह के कन्द मूल के जीवाश्म यहाँ पैलौ गेलौ छै ।" एकरा मँ कुछ जीवाश्म पंडित अनूप कुमार वाजपेयी द्वारा भी जौरौ करलौ गेलौ छै ।
पंडित वाजपेयी केरौ अनुसार, ई कहना एकदम गलत होतै कि जोन काल के वनस्पतियो के ई जीवाश्म छेकै वू काल मँ पशु ,पक्षी, मानव आदि नै रहै । आधुनिक इतिहास केरौ किताबौ सिनी मँ ई तथ्य क स्थापित करै के चेष्टा दिखै छै कि वू काल मँ वायुमंडल मँ कार्बन के मात्रा बहुत अधिक रहै जेकरा कारण मनुष्य, पशु, पक्षी आरनि नै रहै । चूँकि हुनका सब लेली उपयुक्त वायुमंडल नै छेलै। वू काल क आजको समय मँ "कार्बोनिफेरस काल" नाँव सँ संबोधित करलौ गेलौ छै ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी नँ ई खोज करलै छै कि संतालपरगना के चट्टान आरू पहाड़ी मँ बहुत्ते प्रकार के पशु, सरिसृप आरू लम्बा कद काठी वाला मानवो के जीवाश्म छुपलौ छै। एकरा मँ सँ कुछ पहाड़ी, चट्टान केरौ फोटो सहित संदर्भित बातौ के उल्लेख अपनौ "विश्व के प्रचीनतम सभ्यता" नामक किताब मँ करलै छै , जे समीक्षा प्रकाशन, दिल्ली आरू मुजफ्फरपुर सँ प्रकाशित होलौ छै ।
पंडित वाजपेयी क संतालपरगना मँ एगो-दूगो नै भलुक 80 सँ बेसी वैसनौ जग्घौ मिललौ छै जैन्जाँ आय भी संसार केरौ सभसँ पुरानौ आदिमानवों, पशु आऱनि से संबंधित जीवाश्म पत्थरौ मँ समैलौ छै । दोसरौ दन्नें ई क्षेत्र केरौ माटी मँ दबलौ आदि मानवौ के जीवाश्मो सँ संबंधित सबूत भी मिललौ छै ।
पंडित अनूप कुमार वाजपेयी दावा के साथ कहै छै, “मानव केरौ आदि सृष्टि सँ संबंधित इतिहास मँ जे भी अवधारणा छै, संतालपरगना मँ हमरा द्वारा खोजलौ गेलौ साक्ष्य ओकरा खारिज करै के क्षमता रखै छै । रोचक बात ई भी छै कि संतालपरगना आरू एकरा सँ सटलौ बिहार राज्य के भी एगो भाग मँ धरती तरौ मँ एगो मानव सभ्यता दफन छै, ओकरौ भी साक्ष्य सब क हम्में खोजी निकाललै छियै आरू अपनौ किताबौ मँ जग्घौ देलै छियै । वू जीत्तौ-जागलौ सभ्यता तहिय्यौ छेलै, जबै सिंधु घाटी सभ्यता के जनम होलौ भी नै छेलै ।
पंडित वाजपेयी बताबै छै, “जोन सभ्यता के हम्में खोज करलै छियै, वू छेकै "अंग केरौ सभ्यता", जेकरौ कद एत्तै बड़ौ छै कि ओकरौ सामना मँ कोय भी सभ्यता के कद नै मापलौ जाबै सकै छै ।
हुनी चिंता जाहिर करतें कहै छै, "आदि सृष्टि केरौ वू कालखंड सँ जुड़लौ साक्ष्य सिनी क जों नै बचैलौ गेलै त आबै वाला काल मँ कुछ भी नै मिलतै, कैन्हेंकि लगातार तोड़लौ-उखाड़लौ जाय रहलौ छै पहाड़ ।"
Angika Version | Hindi Version | English Version
No comments:
Post a Comment