अंगिका को मातृभाषा कोड देना सरकार का संवैधानिक दायित्व | Angika Samvad | Kundan Amitabh
अंगिका भाषा का उपयोग और इसकी रक्षा करना अंग प्रदेश तथा देश और दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे हर अंगिका भाषा-भाषी का मौलिक अधिकार है । भारत की जनगणना हेतु निर्धारित की गई 277 मातृभाषाओं की कोड सूची में करोड़ों लोगों की अंगिका भाषा को शामिल नहीं करना निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा अंगिका भाषा और अंग संस्कृति के अस्तित्व को खत्म करने की योजनाबद्ध तरीके से की जा रही गहरी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है । जिसमें अंगिका भाषा-भाषी की करोडों की जनसंख्या को मैथिली की जनसंख्या बताकर पहले तो मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसूची में जगह दी जाती है फिर उसी आधार पर अंग प्रदेश को मिथिलांचल का हिस्सा बताकर अलग मिथिला राज्य का सपना बुना जा रहा है । लोकल फॉर वोकल की बात करने वाले प्रधानमंत्री महोदय भी अंगिका का उपयोग स्वार्थसिद्धि हेतु चुनाव के समय में भाषणों में अपनी पार्टी के पक्ष में वोट बटोरने मात्र के लिए करते हैं । सरकार को तुरंत संज्ञान लेकर जनगणना के लिए अंगिका को मातृभाषा कोड प्रदान करना चाहिए ।
यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत व झारखंड की द्वितीय राजभाषा के रुप में दर्ज अंगिका, भारत की उन चुनिंदा 38 भाषाओं में से एक है जो संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल होने हेतु 2003 ई. से ही कतारबद्ध है, परंतु जनगणना हेतु 277 भारतीय भाषाओं की सूची में इसे शामिल नहीं किया जाता है । ज्ञातव्य है कि सन 2003 ई. में भारत सरकार द्वारा गठित सीताकांत महापात्रा कमिटी द्वारा जिन 38 मातृभाषाओं को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करने के लिए अनुशंसित किया है, उनमें अंगिका प्रथम स्थान पर चिन्हित है । इतना ही नहीं झारखंड सरकार द्वारा 2018 ई. में अंगिका को द्वितीय राजभाषा के रुप में मान्यता भी दी गई है । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में चिन्हित होकर अंगिका 2005 ई. में ही आई.एस.ओ. कोड प्राप्त कर चुकी है।
सरकार द्वारा अंगिका भाषा को मातृभाषा कोड प्रदान न करने की स्थिति में हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट का शरण लिया जाएगा । क्योंकि हमारा संविधान सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है । साथ ही भारतीय संविधान का अनुच्छेद-15 किसी भी तरह के भेदभाव पर रोक लगाता है । सरकार की यह संवैधानिक जिम्मेवारी है कि वह देश की जनता के मूल अधिकारों की रक्षा करे । अंगिका को जनगणना हेतु मातृभाषा कोड न प्रदान करने से अंगिका भाषा-भाषी जनता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है । ऐसी स्थिति में सीधे सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए अनुच्छेद- 32 और हाई कोर्ट के लिए अनुच्छेद-226 का सहारा लिया जाएगा । चूँकि यह मामला जनहित से जुड़ा है तो अनुच्छेद -32 और 226 के तहत जनहित याचिका (PIL) भी दाखिल की जाएगी ।
देश को अंग्रेजों से इसलिए आजाद कराया गया था कि हमें अपनी भाषा और संस्कृति को सहेजकर इसे विकसित करने का अवसर प्राप्त हो । परंतु आजाद भारत में ही अंग्रेज जार्ज ग्रियर्सन के आधे-अधूरे भाषाई सर्वेक्षण का हवाला देकर, प्राचीनतम अंग महाजनपद की भाषा अंगिका और इसकी संस्कृति को विनष्ट करने का घृणित प्रयास किया जा रहा है । भारत सरकार को यह स्थिति यथाशीघ्र स्पष्ट करनी चाहिए कि आजाद भारत में ब्रिटिश हुकूमत वाले संविधान की चलेगी या भारतीय संविधान में यहाँ की जनता को दिए गए मौलिक अधिकारों की । अपनी अंगिका भाषा और प्राचीन अंग महाजनपदीय संस्कृति की रक्षा हेतु यहाँ की जनता अपने प्राण को दाँव पर लगा देने से भी नहीं हिचकेगी ।
दरअसल, भारत के बिहार, झारखंड व पं. बंगाल के 26 जिलों की करोड़ों जनों की अंगिका भाषा को जनगणना के लिए मातृभाषा कोड नहीं प्रदान करना भारत सरकार की बहुत बड़ी संवैधानिक भूल है । अगर जनगणना हेतु निर्धारित भाषा कोड सूची को संशोधित कर उसमें अंगिका को जगह दी जाती है तो यह समझा जाएगा कि सरकार से यह भूल अनजाने में हुई है । अन्यथा यह साफ हो जाएगा कि किन्हीं निहित स्वार्थी तत्वों के प्रभाव में आकर सरकारी अमला इस साजिश को अंजाम देने में लगा हुआ है । अंग प्रदेश की जनता इस सरकारी मनमानी को बरदाश्त नहीं करेगी ।
1965 ई. से 2001 ई. की जनगणना में जनगणना विभाग के आँकड़ों में मातृभाषाओं की सूची में सूचीबद्ध रहने वाली अंगिका को अचानक 2010 ई. के आसपास इस सूची से इसलिए हटा दिया जाता है, क्योंकि 2003 ई. में अंगिका की जनसंख्या को मैथिली की जनसंख्या बताकर अष्टम अनुसूची में सूचीबद्ध होने की भनक लोगों को ना लगने पाए ।
2011 ई. तक की जनगणना में लोगों से उनकी मातृभाषाओं की जानकारी लेकर रेकार्ड में भाषा का नाम लिखकर दर्ज किया जाता था । उस समय तक मातृभाषाओं को कोड प्रदान नहीं किया गया था । 2021 ई. की जनगणना हेतु, 2020 ई. में तैयार किए गए मैनुअल में मातृभाषा का नाम सीधे दर्ज ना कर उन्हें उनको प्रदत्त कोड के माध्यम से दर्ज करने का प्रावधान रखा गया है । कोरोना महामारी के चलते 2021 की जनगणना टल गई और इस मैनुअल का उपयोग नहीं किया जा सका । इसी बीच इस साजिश की जानकारी आम जनों तक पहुँच गई कि इस मैनुअल में सूचीबद्ध 277 मातृभाषाओं और उनके कोडों की सूची में अंगिका भाषा को शामिल नहीं किया गया है। परंतु अगर इसी मैनुअल के आधार पर इस वर्ष 2022 में प्रस्तावित जनगणना की गई तो अंगिका भाषा और इसका कोड दर्ज नहीं होने की स्थिति में अंगिका बोलने वाली जनसंख्या का सही आकलन असंभव हो जाएगा ।
जनगणना विभाग द्वारा करवाये गए 1961 ई. से 2001 ई. तक की जनगणनाओं में मातृभाषाओं की सूची में अंगिका का नाम शामिल था । 2010 ई. के पहले तक भारत सरकार के जनगणना विभाग के वेबसाइट पर उपलब्ध मातृभाषाओं की सूची में अंगिका भी सूचीबद्ध थी । परंतु अचानक से इसे हटा दिया गया । इस मनमानी का उल्लेख करते भारत सरकार के जनगणना विभाग सहित राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को पत्र के माध्यम से अंगिका के वरिष्ठ साहित्यकार कुंदन अमिताभ ने आग्रह किया था कि अंगिका के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है । श्री अमिताभ ने यह आरोप भी लगाया था कि किसी निहित स्वार्थवश ऐसा जान-बूझकर किया जा रहा है । उन्होंने आग्रह किया था कि पहले की स्थिति बहाल की जाय और मातृभाषाओं की सूची में अंगिका को पूर्ववत शामिल किया जाय । भारत सरकार ने श्री अमिताभ के उस पत्र का जबाब साढ़े तीन साल बाद एक रिसर्च स्कॉलर के माध्यम से भिजवाया । भारत सरकार के किसी अधिकारी तक को भी वह कारण पता नहीं था कि अंगिका को सूची से क्यों हटा दिया गया था । कारण पता होने की स्थिति में पत्र का जबाब महीना भर के अंदर अपेक्षित था ।
भारत सरकार से आग्रह करने और उन्हें याद दिलाने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है । 12 बर्ष बाद भी अंगिका को पुनः मातृभाषा की सूची में नहीं जोड़ा गया है । रिसर्च स्कॉलर द्वारा भेजे गए जबाब में अंगिका भाषा को सूची से हटाने का आधार जनसंख्या बताया गया । कहा गया कि दस हजार जनसंख्या से कम बोलने वाली भाषाओं को मातृभाषाओं की सूची से हटा दिया गया है।
जनसंख्या की प्रक्रिया आरंभ होने के पहले ही आप (सरकारी तंत्र) कौन होते हैं यह तय करने वाले कि अंगिका भाषा सीमित जनसंख्या (10000 से भी कम) द्वारा ही बोली जाती है और उपयोग की जाती है । जनगणना ही तो इसलिए की जा रही है कि जनसंख्या के साथ-साथ सभी मातृभाषाओं को उपयोग करने वाले वास्तविक जनसंख्या का पता चल पाए । अंगिका भाषा-भाषी जनसंख्या के दस हजार से भी कम बताने का आधार क्या है? अंतर्राष्ट्रीय संस्था SIL 8 लाख बताती है । अंग प्रदेश के लोग 6 करोड़ बताते हैं । कौन सही है कैसे पता चलेगा ? तीन अलग स्त्रोतो में हजारों का नहीं, लाखों का, करोड़ों का फर्क है । अंगिका को मातृभाषा कोड प्रदान करके जनगणना करवा लीजिए ।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के अद्यतन के लिए निर्देशात्मक मैनुअल (Instructional Manual for Updation of National Population Register ) के पृष्ठ संख्या 21 पर साफ तौर पर लिखा हुआ है कि जनगणना कर्ता से यह निर्धारित करने की अपेक्षा नहीं की जाती है कि क्या किसी व्यक्ति द्वारा कही गई भाषा किसी अन्य भाषा की बोली है । अंगिका को मातृभाषा कोड आवंटन ना होने की स्थिति में जनगणना की शुद्धता संदेहास्पद ही रहेगा ।
निष्पक्षता बरतते हुए होना तो यह चाहिए था कि दस हजार से कम जनसंख्या द्वारा बोलने वाली भाषाओं की एक अलग हूी सूची बना देते जिससे कि लोगों को सही स्थिति का पता होता । सरकार को भी इस बात की खबर रहती कि विलुप्त होती जा रही भाषाओं को बचाने की उनकी ओर से क्या प्रयास करने की जरूरत है । सूची से हटा देने से बहुत बड़ी साजिश की गंध आती है । इस तरह की भाषाओं को कोड से वंचित करने की बजाय इस चीज का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए था कि उन्हें निश्चित रूप से कोड प्रदान किए जायें । कम जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं को कोड देकर जनगणना कराने से हम भाषा विशेष को लुप्त होने से बचा सकते हैं। भाषाओं को निर्मित होने में हजारों - सैकड़ों बर्ष लगते हैं । किसी भी देश की सारी मातृभाषायें उनकी सबसे बड़ी धरोहर होती हैं । देश की जनता के लिए उनकी मातृभाषाओं का संरक्षण व संवर्द्धन उनका मौलिक अधिकार होता है । भाषायें संस्कृतियों की आत्मा होती हैं । भारतीय संविधान के प्रावधान के तहत भाषा व संस्कृति की रक्षा सुनिश्चित करना हर देशवासी का मौलिक अधिकार है । वहीं सरकार का कर्तव्य है कि वे भाषा व संस्कृति की रक्षा सुनिश्चित करे।
मैथिली वालों का कहना है कि ग्रियर्सन ने छिका-छिकी को
मैथिली की उपबोली बताया है । पर छिका-छिकी अंगिका की एक बोली मात्र है । राहुल
सांकृत्यायन ने अंगिका को प्राचीन अंग महाजनपद की भाषा बताया है । अंगिका एक
इंडो-आर्यन भाषा है। यह हिन्दी की उपभाषा है । अंगिका की बोली में ठेठी, देहाती, देसी, दखनाहा, मुंगेरिया, भागलपुरिया, देवघरिया, गिद्धौरिया, धरमपुरिया, सहरसाबड़ी, सुरजपुरी, सुरजपुरिया, खोरठा, खोट्टा आदि हैं । अंगिका भाषा की स्वतंत्र अंग लिपि की चर्चा बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तर में हुई है । अंगिका में सैकड़ों की संख्या में लेखक व कवि हैं जो ना केवल अंगिका में रचना का सृजन करते रहे हैं बल्कि उन्हें खुद के खर्चे पर पुस्तक रूप में प्रकाशित कर पाठकवर्ग के सामने लाते रहते हैं।
महात्मा गांधी जी ने हर भारतीय के हृदय में स्वदेशी, स्वभाषा और स्वराज की अलख जगाई। उनके विचार और आदर्श सदैव हर भारतवासी को राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित करते रहेंगे। अंगिका भाषा और गौरवशाली अंग संस्कृति की रक्षा हेतु अब अलग अंग प्रदेश राज्य की स्थापना जरूरी हो गई है । अंगिका भाषा और अंग संस्कृति के हित की रक्षा में भारत सरकार अभी तक असमर्थ रही है । अंगिका को मैथिली और अंग प्रदेश को मिथिला का हिस्सा बता कर देश तोड़ने की जो साजिश चल रही है, सरकार द्वारा उसे समझने की जरूरत है । सरकार को चाहिये कि मैथिली और मिथिला के नाम पर अंगिका और अंग संस्कृति पर नेपाली संस्कृति थोपने का प्रयास बंद करे । आजाद भारत में अंग्रेज के संविधान से नहीं अंबेडकर के नेतृत्व में बने भारतीय संविधान के हिसाब से चलना है । हमें अंगिका और अंग प्रदेश चाहिए, जिससे हम अपने मूल भूत अधिकार की रक्षा सुनिश्चित कर सकें ।
अंग-प्रदेश की करोड़ों जनता के समक्ष अंगिका भाषा और अंग संस्कृति के अस्तित्व की रक्षा को लेकर कई जिम्मेवारियाँ एक साथ निभाने की जरूरत आन पड़ी है । जनसंख्या-2021 हेतु अंगिका को मातृभाषा कोड दिलाना, अंगिका को संविधान की अष्टम अनुसूची में जगह दिलाना, अंगिका को बिहार की द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिलाना, संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार के तहत अंगिका की रक्षा का प्रण लेना, जन-जन के साथ जन प्रतिनिधियों - विधायकों, सांसदों तक में अंगिका को लेकर जागरूकता फैलाना, राज्य सरकार और भारत सरकार को अंगिका को संवैधानिक हक देने हेतु बाध्य करना, फेसबुक के अलावे अन्य सोशल मीडिया के माध्यमों – ट्वीटर, अंग्रेजी विकीपीडिया में सक्रियता से जुड़ना, अंग प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में अंगिका की गतिविधियों को बढ़ाना, सभी 26 जिलों के गाँव-गाँव में टोली बनाकर स्कूलों, चौपालों,मोहल्लों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंड में भित्ती व पोस्टर लेखन के माध्यम से बच्चों व शिक्षकों को विशेष रूप से शामिल कर मातृभाषा के रूप में अंगिका भाषा के लिए जागरूकता, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग, अंगिका को मातृभाषा कोड दिलवाने के लिए प्रखंड, जिला, राजधानी स्तर पर शांतिपूर्वक धरना-प्रदर्शन के आयोजन, जिलाधिकारी, विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि को ज्ञापन सौंपना, अंग-प्रदेश के सभी 26 जिले के गजट-पत्र में अंगिका भाषा को जिले की भाषा के रूप में दर्ज करवाना आदि।
आज जब हम अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर वर्तमान परिवेश में अंगिका भाषा की स्थिति व भावी रणनीति पर विचार विमर्श करने हेतु एकत्रित हुए हैं तो इस दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी जान लेना जरूरी है । अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जान लेने से हमारी भावी रणनीति का मार्ग स्पष्ट हो जाता है । हमें बस यह ध्यान रखना है कि सभी कुछ संवैधानिक दायरे में हों । वर्तमान ‘पाकिस्तान’ की स्थापना के सिलसिले में यह बहस छिड़ गई थी कि वहाँ की राष्ट्रभाषा क्या होगी? उस बहस की अनदेखी कर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने आनन-फानन में 1948 में उर्दू को वहाँ का राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया । पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंग्ला देश) में इसके विरोध में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई । वहां बांग्ला को राजभाषा बनाने की माँग को लेकर गहन आंदोलन छिड़ गया । तत्पश्चात ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘राष्ट्रभाषा संग्राम परिषद’ का गठन कर 11 मार्च 1949 को ‘बांग्ला राष्ट्रभाषा दिवस’ मनाने का ऐलान कर दिया । उस ऐलान के साथ ही पाकिस्तान सरकार के फैसले के विरोध में सड़क पर उतरे आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज हुए और आँसू गैस के गोले छोड़े गए । परिणामस्वरूप भाषा आंदोलन दबने के बजाय और तेज होता गया । फिर तीन वर्ष बीतते-बीतते छात्रों का वह संघर्ष वृहद राजनीतिक आंदोलन में तब्दील हो गया ।
फिर 21 फरवरी 1952 का वह ऐतिहासिक दिन आया जब ढाका में कानून सभा की बैठक होनी थी । भाषा आंदोलनकारियों ने उस सभा में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपने का फैसला किया । उन्होंने जैसे ही ढाका विश्वविद्यालय से निकलकर राजपथ पर आना शुरू किया, पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी जिसमें कई आंदोलनकारियों की जानें गईं । इस घटना के बाद पूर्वी पाकिस्तान के लोग हर वर्ष 21 फरवरी को ‘भाषा शहीद दिवस’ के रूप में मनाने लगे । यह दिन जीवन संग्राम की प्रेरणा का प्रतीक बन गया । भाषा से संस्कृति, संस्कृति से स्वायत्तता और स्वायत्तता से स्वाधीनता की मांग उठी । इस तरह पूर्वी पाकिस्तान के भाषा आंदोलन ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का रूप लिया और एक नए देश का जन्म हुआ । बांग्लादेश के भाषा शहीद दिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1999 ई. में ‘मातृभाषा दिवस’ की मान्यता दी । तत्पश्चात वर्ष 2000 से हम हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाते हैं ।
कोरोना के भयाक्रांत माहौल में आयोजित हो रहे अंगिका समागम के माध्यम से इन मुद्दों के समाधान वास्ते कोई ठोस निर्णय हो पाएगा, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए । अंग प्रदेश के जन-गण-मन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) के अवसर पर अंग जन समागम कार्यक्रम का आयोजन, अंग प्रदेश के सभी 26 जिलों के हेड क्वार्टर, हर प्रखंड और हर गाँव में सफलता पूर्वक आयोजित कर हम अंग प्रदेश की जनता भारत सरकार तक अपनी आवाज पहुँचाने में कामयाब होगें, ऐसी आशा और शुभकामना है ।
(अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, 21 फरवरी - 2022, के अवसर पर तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अंगिका विभाग में अंग प्रदेश के जन-गण-मन द्वारा आयोजित अंग जन समागम कार्यक्रम समारोह में पाठ किया गया संदेश : कुंदन अमिताभ )
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