Ang Prasang | सुप्राचीन "अंग सभ्यता" की खोज की दिशा : एक अध्ययन | by जीवन ज्योति चक्रवर्ती | Angika.com
पिछले कुछ सालों से झारखण्ड में दुमका के वरिष्ठ पुरातत्त्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने जिन जीवाश्मों की खोज कर चर्चा का विषय बनाया है, वे पृथ्वी पर मनुष्यों एवं अन्य जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति के बारे में शोधकर्ताओं की "काल-सारणी" यानी "एरा इन्डेक्स" को सवालों के घेरे में खड़े करते दिखते हैं। उदाहरणार्थ भूगर्भशास्त्र की आधुनिक पुस्तकों के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति 500000 साल पहले हुई, वहीं दूसरी ओर पंडित वाजपेयी ने झारखण्ड के संताल परगना प्रमंडल (जो अंग क्षेत्र का भाग है), में चावल, चना, गेहूँ के जीवाश्मों के अलावा खीरा, कद्दू आदि बीजों सहित तरह-तरह की वनस्पतियों के जीवाश्मों को संगृहित किया है, तो दूसरी ओर उन्होंने यहाँ के पत्थरों पर जीवाश्म रूप में विद्यमान् मनुष्यों की पदछापों को ढूँढा है। पंडित वाजपेयी ने प्रमंडलीय जनसम्पर्क कार्यालय संताल परगना, दुमका से 2009 ईसवी में सरकारी स्तर पर प्रकाशित राजमहल नाम की अपनी एक पुस्तक में अनाजों-बीजों के जीवाश्मों के चित्रों को दर्शाते लिखा है कि यहाँ एक सभ्यता विनष्ट हुई और फिर से शुरू हुआ प्रस्तर युग। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक आधारों को लेकर लिखी गयी इस पुस्तक में यह बताया गया है कि किस परिस्थिति में एक अति प्राचीन सभ्यता धरती में समा गयी। विश्व की प्रचीनतम सभ्यता के रूप में "अंग सभ्यता" (Ang Civilization) को प्रामाणिकता के साथ स्थापित करने एवं इस सभ्यता की खोज के क्रम में दुनिया को नई राह व नये पुरातात्विक मापदंड स्थापित करने वाले पुरातत्त्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी की खोज पर श्री जीवन ज्योति चक्रवर्ती,शोधार्थी, इतिहास विभाग, सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका (झारखण्ड) का एक महत्वपूर्ण शोधपूर्ण आलेख ।
मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन को अपनी पुस्तक 'राजमहल' (ऐतिहासिक और पुरातात्विक) भेंट करतें प्रसिद्ध पुरातत्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी |
पूर्वी भारत के झारखण्ड और बिहार में कभी अंग नाम से विख्यात क्षेत्र में विभिन्न जीव-जन्तुओं के भरपूर जीवाश्म हैं तो वहीं धरती में मिले हैं प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष, ऐसे में इस क्षेत्र की प्राचीनता को इतिहास में दरकिनार कैसे किया जा सकता ?
यूँ तो पेड़-पौधों के जीवाश्म इस क्षेत्र में मिलते ही रहे हैं, मगर पिछले कुछ सालों से झारखण्ड में दुमका के वरिष्ठ पुरातत्त्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने जिन जीवाश्मों की खोज कर चरचा का विषय बनाया है, वे पृथ्वी पर मनुष्यों एवं अन्य जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति के बारे में शोधकर्ताओं की "काल-सारणी" यानी "एरा इन्डेक्स" को सवालों के घेरे में खड़े करते दिखते हैं। उदाहरणार्थ भूगर्भशास्त्र की आधुनिक पुस्तकों के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति 500000 साल पहले हुई, वहीं दूसरी ओर पंडित वाजपेयी ने झारखण्ड के संताल परगना प्रमंडल (जो अंग क्षेत्र का भाग है), यहाँ चावल, चना, गेहूँ के जीवाश्मों के अलावा खीरा, कद्दू आदि बीजों सहित तरह-तरह की वनस्पतियों के जीवाश्मों को संगृहित किया है, तो दूसरी ओर उन्होंने यहाँ के पत्थरों पर जीवाश्म रूप में विद्यमान् मनुष्यों की पदछापों को ढूँढा है।
"यहाँ एक सभ्यता विनष्ट हुई और फिर से शुरू हुआ प्रस्तर युग।" 1
ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक आधारों को लेकर लिखी गयी इस पुस्तक में यह बताया गया है कि किस परिस्थिति में एक अति प्राचीन सभ्यता धरती में समा गयी।
पंडित वाजपेयी द्वारा की गयी खोज पर "राजमहल" पुस्तक की पृष्ठ संख्या 8 पर "दो शब्द" शीर्षक के अन्तर्गत जनसम्पर्क विभाग के प्रमंडलीय उप निदेशक (संताल परगना, दुमका) विजय कुमार ने लिखा है कि :-
"वाजपेयी ने वनों और कंदराओं में घूम-घूमकर संताल परगना के सामाजिक व भौगोलिक क्षितिज पर विहंगम दृष्टिपात किया है, साक्ष्य इकट्ठा किया है। भविष्य की पीढ़ियों के लिये, विश्व को इस क्षेत्र की अर्वाचीन सभ्यता का भूल माना है।" 2
इस पुस्तक से हटकर देखें तो कई वरिष्ठ आधिकारी, शोधकर्ता, लेखक आदि पंडित वाजपेयी द्वारा की गयी इस खोज पर वर्षों से मुहर लगाते रहे हैं कि "अंग क्षेत्र में अति प्राचीन सभ्यता दफन अवश्य है।" इस महत्वपूर्ण खोज की महत्ता को देखते हुए शैलेन्द्र भूषण नाम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने वाजपेयी को लिखे एक पत्र में उल्लेख किया है कि :-
"उक्त खोज पर भविष्य में यहाँ के इतिहास को समझने में इतिहासकारों को मदद मिलेगी तथा संताल परगना के इतिहास को नयी दिशा प्राप्त होगी।" 3
शैलेन्द्र भूषण ने वह पत्र अपर समाहर्ता, दुमका के नाते 17 मई, 2008 ईसवी को लिखा था जो हाल में भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त हुए हैं।
"अवशेष चीख-चीख कर इस क्षेत्र में एक प्राचीन सभ्यता दफन होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।" 4
उपेन्द्र नारायण उराँव भी भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
इसी कड़ी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, उत्तरी क्षेत्र, लखनऊ के सहायक पुरालेखविद् डॉ0 धर्मेन्द्र कुमार का मन्तव्य भी पठनीय है, जो दर्ज है पंडित वाजपेयी के पास मौजूद एक आगन्तुक पंजी में।
डॉ0 धर्मेन्द्र कुमार ने अपने मन्तव्य में इस बात का उल्लेख किया है कि :-
"मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आपमें संग्रह की प्रवृत्ति बनी रहे तथा जिज्ञासुओं को उनकी तृष्णा मिटाने का अवसर मिले।" 5
पत्रों एवं आगन्तुक पंजी में दर्ज मन्तव्यों की फेहरिस्त लम्बी है जिनमें ऐसी बात नहीं कि केवल खोजों पर प्रकाश ही डाले गये हैं, बल्कि आरोप भी लगाये गये हैं कि अति प्राचीन सभ्यता के साक्ष्य किस प्रकार नष्ट हो जाते हैं। कुछ साल से मुम्बई में रह रहे जन्तु वैज्ञानिक डॉ0 नारायण चन्द्र रूज ने आगन्तुक-पंजी में अंगरेज़ी भाषा में लिखा है कि : -
"Fossils collected by Sri Anup Kumar Bajpai jee seems to think that the area Santhal Paragana including Dumka, Deoghar, Pakur,Barharwa, Banka, Sahibgunj and Rajmahal ranges of hills which are being destroyed by the Govt. and Pvt. agencies actually possess the great remains of past history of not only human civilization but it too contains some much details (many of the understand mysteries of the evolution of life and various diversities). Axe and idol (made up of soil) and fossils of seeds is giving picture of past stone age." 6
अर्थात् "श्री अनूप कुमार वाजपेयी जी द्वारा एकत्रित जीवाश्मों को देखकर लगता है कि दुमका, देवघर, पाकुड़, बरहरवा, बांका, साहिबगंज और राजमहल की पहाड़ियों सहित संथाल परगना की पहाड़ियाँ न केवल मानव सभ्यता के पिछले इतिहास के अवशेष हैं वरन् इसमें बहुत अधिक विवरण ( जीवन के क्रमागत विकास एवं अन्य विभिन्नताओं के रहस्यमय विषय) शामिल हैं जिसे सरकार एवं निजी संस्थानों द्वारा नष्ट किया जा रहा है। कुल्हाड़ी और मूर्ति (मिट्टी से निर्मित) और बीजों के जीवाश्म पिछले पाषाण काल की तस्वीर बयां कर रहे हैं।"
डॉ0 नारायण चन्द्र रूज ने उपर्युक्त बातें 13 मार्च, 1999 ईसवी को तब दर्ज की थीं जब वे दुमका स्थित संताल परगना महाविद्यालय अन्तर्गत जन्तु विज्ञान विभाग में रीडर थे।
वहीं सरकार द्वारा संचालित "दुमका संग्रहालय" के संग्रहालयाध्यक्ष उमाशंकर पंडित ने 30 मार्च, 1999 ईसवी को अपने मंतव्य में लिखा है कि :-
"स्थानीय पत्रकार एवं खोजी अनुसंधानकर्ता श्री अनूप कुमार वाजपेयी के नया पाड़ा स्थित उनके आवास पर जाने का मौका मिला। संताल परगना के वनों-कन्दराओं से घूम-घूमकर इनके द्वारा यहाँ की ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता से सम्बन्धित संग्रहित नमूनों को देखा। इनके द्वारा संग्रहित साक्ष्यों से मुझे ऐसा लगा कि संथाल परगना में पाषाणयुगीन सभ्यता अवश्य दफन है। श्री वाजपेयी संथाल परगना के ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर जो पुस्तक प्रकाशित करने वाले हैं, मैं कामना करता हूँ कि इनकी पुस्तक भविष्य में अनुसंधानकर्ताओं के लिए काफी महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।" 7
उल्लेखनीय है कि "संताल परगना" को ही "संथाल परगना" भी कहा जाता है जिस नाम का उल्लेख डॉ0 नारायण चन्द्र रूज एवं उमाशंकर पंडित ने किया है।
उपर्युक्त मन्तव्य बताते कि अनुसंधानकर्ता पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने संताल परगना सहित पूरे अंग क्षेत्र में प्राचीनतम सभ्यता के अवशेषों को ढूंढ निकालने में कितने लम्बे समय तक श्रमसाध्य और व्ययसाध्य कार्य किया जिसका उल्लेख करते हुए इन्होंने 2018 ईसवी में समीक्षा प्रकाशन दिल्ली/मुजफ्फरपुर से प्रकाशित अपनी "विश्व की प्राचीनतम सभ्यता" पुस्तक के आरंभ में "अपनी बात" शीर्षक के अन्तर्गत पृष्ठ संख्या 10 पर लिखा है कि :-
"बचपन से ही मैं इस क्षेत्र के पुरातत्त्व पर खोज तथा चिंतन-मनन कर रहा हूँ, परन्तु पूर्ण रूप से पिछले अट्ठाईस वर्षों से।" 8
इसी पृष्ठ पर आगे लिखा है कि :-
"जब-जब मैंने प्राचीनतम सभ्यता से सम्बन्धित अवशेषों, जीवाश्मों को इस क्षेत्र की धरती से बाहर आकर बर्बाद होते देखा है, तब-तब मेरी आँखों से आँसू छलक आये हैं।" 9 उल्लेखनीय है कि पंडित वाजपेयी एक वरिष्ठ पत्रकार भी हैं।
इसी पुस्तक की पृष्ठ संख्या 349 पर दिखता है "पत्रकार एवं पुरातात्विक खोजकर्ता अनूप कुमार वाजपेयी" के नाम दुमका के उपायुक्त मस्तराम मीणा द्वारा उनकी गोपनीय शाखा के पत्रांक 746/गो0 द्वारा 8 अप्रैल, 2008 ईसवी को लिखा गया एक पत्र, जिसमें यह उल्लेख है कि :-
"आपने पिछले इक्कीस वर्षों से संताल-परगना के पहाड़ों-जंगलों में घूम-घूम कर शोध के खयाल से जिन ऐतिहासिक सामग्रियों को खोजा और पाया, वह एक सराहनीय कार्य है।" 10
उपर्युक्त तथ्यों एवं विश्व की प्राचीनतम सभ्यता पुस्तक को आधार मानकर पुरातत्त्व एवं प्राचीनतम सभ्यता-संस्कृति से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करने के लिये इस क्षेत्र में दृष्टि दौड़ाने का प्रयास करता हूँ तो वास्तव में हैरान करने वाले रहस्यों से साक्षात्कार होता है। साहिबगंज जिला के राजमहल से लेकर दुमका ही नहीं अपितु दूसरी ओर बिहार राज्य अन्तर्गत प्राचीन अंग के जिलों में मिले बहुत से प्राचीन अवशेष दिखाई पड़ते हैं जो विश्व पटल पर अपनी धाक बनाने की दिशा में अग्रसर लगते हैं। उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता हूँ मैं पंडित वाजपेयी द्वारा खोजी गयी दुमका जिला में "घाघाजोर" नामक एक स्थल की चट्टान पर जीवाश्म रूप में अवस्थित मनुष्यों की पदछापें, जो हैरानी में डालतीं एवं कहती प्रतीत होती हैं कि "हम ही तो हैं विश्व के प्राचीनतम मनुष्यों के साक्ष्य।" सही में इसे संरक्षित करने की आवश्यकता महसूस करता हूँ। इससे हटकर जब कुछ जानने की ईच्छा प्रकट करता हूँ तो पाता हूँ कि बहुत से वैसी पुरावस्तुएँ पहाड़ों-जंगलों में हैं जो इस क्षेत्र के प्रागैतिहासिक काल से जुड़े लगते हैं, और फिर दृष्टि पड़ती है पिछले 22 दिसम्बर, 2020 ईसवी के कुछ समाचार पत्रों पर जिनमें झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा दुमका में दिये गये एक महत्त्वपूर्ण वक्तव्य पर, जो उन्होंने पंडित वाजपेयी द्वारा उपहार स्वरूप दो पुस्तकें प्रदान किये जाने के मौके पर दिया। उसके दूसरे दिन यानी 23 दिसम्बर को देवघर से प्रकाशित प्रतिष्ठित दैनिक समाचार-पत्र "प्रभात खबर" में उससे सम्बन्धित समाचार है इस प्रकार :-
"पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से प्रकाशित अपनी पुस्तक 'राजमहल' को अपनी एक अन्य पुस्तक 'अंगिका-खोरठा' के साथ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भेंट की। मुख्यमंत्री ने कहा कि वाजपेयी द्वारा लिखी गयी पुस्तकें हमेशा उनके सामने टेबल पर रहती हैं। कहा कि प्राथमिकता देते हुए उन्होंने पर्यटन विकास विभाग को राजमहल सहित संताल परगना की प्राचीन वस्तुओं को बचाने का निर्देश दिया है। जनवरी से काम होता दिखेगा। कहा कि पुस्तक में वर्णित राजमहल और अन्य क्षेत्रों को पुरातात्विक स्थलों के रूप में विकसित किया जायेगा ताकि शोधकर्ता और इतिहासकार यहाँ आएं।" 11
उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व 2013 ईसवी में दुमका के सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय ने एक योजना के तहत संताल परगना के ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक स्थलों की खोज की एक पहल की थी, ताकि इस विश्वविद्यालय में एक संग्रहालय की स्थापना हो सके, लेकिन वह योजना मूर्त रूप नहीं ले पायी। उस समय इस विश्वविद्यालय के कुलपति थे प्रो0 डॉ0 एम बशीर अहमद खान, जिनमें एक जिजीविषा थी। योजना को मूर्त रूप देने के लिये उनकी ओर से पुरातत्त्वविद् पंडित वाजपेयी से सहयोग की अपेक्षा की गयी थी। इस बारे में उनके निर्देश पर सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के "संताल कल्चर एंड म्युजिअम" के कॉडिनेटर डॉ0 अमरनाथ झा द्वारा दिनांक 25 फरवरी, 2013 ईसवी को एक अनुरोध-पत्र भेजा गया था उसमें प्रमुख बातें इस प्रकार है :-
" Hon. Vice Chancellor S.K.M. University, Dumka has been pleased to direct me to write a letter to you to seek your services and expertise as an archaeologist for exploring the various historical and archaeological sites lying within the geographical jurisdiction of University in order to establish a museum for the university.
I am confident that your association with us as an advisor will prove to be an asset in making the initiative of the university a grand success." 12
यानी "माननीय कुलपति ने मुझे विश्वविद्यालय के लिए एक संग्रहालय स्थापित करने के उद्देश्य से विश्वविद्यालय के भौगोलिक क्षेत्राधिकार में विभिन्न ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों की खोज के लिए एक पुरातत्वविद् के रूप में आपकी सेवाओं और निपुणता को प्राप्त करने के लिए आपको एक पत्र लिखने का सहर्ष निर्देश दिया है।
मुझे विश्वास है कि एक सलाहकार के रूप में हमारे साथ आपका संबंध विश्वविद्यालय को एक शानदार सफलता दिलाने में वरदान साबित होगा।
आपके सहयोग एवं ज्ञान की आशा में ..."
भले ही पंडित वाजपेयी से की गयी पहल ने मूर्त रूप नहीं लिया, मगर इस दौरान इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं। उनमें से "विश्व की प्राचीनतम सभ्यता” सहित अपनी तीन पुस्तकों में इस बात को दमदार रूप से रखा है कि संताल परगना सहित अंग क्षेत्र में दफन है प्राचीन सभ्यता।
बावजूद इन पुस्तकों के मेरी दृष्टि रुक जाती है अन्तत: इनके द्वारा बनायी गयी आगन्तुक-पंजी पर ही, जिसमें लिखे गये एक और महत्त्वपूर्ण उद्गार को यहाँ उद्धृत करना उपयुक्त समझता हूँ। वह उद्गार है अखिल भारतीय अंगिका साहित्य मंच के महानिदेशक श्रीस्नेही का जो उन्होंने 1 नवम्बर, 2000 ईसवी को प्रकट किया था, जो इस प्रकार है :-
"प्रसरित वनांचल पथ के प्रमत्त पथित श्री अनूप कुमार वाजपेयी के कार्यकलाप सद्यः प्रशंसनीय ही नहीं' अनुकरणीय हैं, जिन्होंने संताल परगना की प्राचीनतम जीवाश्म आकृतियों तथा सभ्यता-प्रतीकों का संग्रह अति मनोयोगपूर्वक सम्पन्न किया है। ऐसे मेधावी पुरातत्त्व-अनुसंधित्सु को राजकीय आर्थिक सहयोग की आवश्यकता प्रतीत होती है जिससे माटी का ममत्व उभरकर एक सुदृढ़ राष्ट्रीयता का प्रथस्त बिम्ब प्रस्तुत कर सके।" 13
श्रीस्नेही के इस उद्गार के चंद दिनों बाद 15 नवम्बर, 2000 ईसवी को बिहार से झारखण्ड राज्य पृथक हुआ और बात आई, गयी, बीत गयी। अब 2021 ईसवी का नया सूरज झांकने ही वाला है, ऐसे में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा प्राचीन वस्तुओं को बचाने और पुरातात्त्विक स्थलों को विकसित करने का निर्णय, तो दूसरी ओर बिहार में स्थित अंग क्षेत्र के भाग में सभ्यता के मिले अवशेष को लेकर उस राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इनके संरक्षण-संवर्द्धन के अलावा और भी खोज का कार्य शुरू कराया है। ऐसे में संभव है संताल परगना सहित पूरे अंग क्षेत्र की प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष भविष्य में शोधकर्ताओं के लिये किसी वरदान से कम न सिद्ध हों।
संदर्भ :
(1) पंडित अनूप कुमार वाजपेयी : राजमहल (Historical and Archaeological facts)
प्रकाशक : प्रमंडलीय सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय, संताल परगना, दुमका,पृष्ठ संख्या : 21
प्रकाशन वर्ष : 2009 ईसवी
(2) वही, पृष्ठ संख्या : 8
(3) शैलेन्द्र भूषण, अपर समाहर्ता, दुमका द्वारा 17 मई, 2008 को पंडित अनूप कुमार वाजपेयी को लिखा गया पत्र।
(4) उपेन्द्र नारायण उराँव, उप विकास आयुक्त, दुमका द्वारा 22 अप्रैल 2020 को पंडित अनूप कुमार वाजपेयी को लिखा गया पत्र।
(5) डॉ0 धर्मेंद्र कुमार, सहायक पुरालेखविद्, उत्तरी क्षेत्र, लखनऊ द्वारा पंडित अनूप कुमार वाजपेयी की आगन्तुक-पंजी में लिखे गये मंतव्य का हिस्सा।
(6) डॉ0 नारायण चन्द्र रूज, रीडर, जन्तु विज्ञान, संताल परगना महाविद्यालय, दुमका द्वारा दिनांक 13 मार्च, 1999 ईसवी को पंडित अनूप कुमार वाजपेयी की आगन्तुक-पंजी पर दर्ज मंतव्य।
(7) उमाशंकर पंडित, संग्रहालयाध्यक्ष, दुमका संग्रहालय, दुमका द्वारा 30 मार्च, 1999 ईसवी को पंडित अनूप कुमार वाजपेयी की आगन्तुक-पंजी पर दर्ज मंतव्य।
(8) पंडित अनूप कुमार वाजपेयी : विश्व की प्राचीनतम सभ्यता (Historical & archaeological facts)
प्रकाशक : समीक्षा प्रकाशन,दिल्ली/मुजफ्फरपुर, प्रकाशन वर्ष : मार्च 2018 ईसवी.पृष्ठ संख्या : 10
आईएसबीएन : 978-93-87638-12-9
(9) मस्त राम मीणा, उपायुक्त दुमका द्वारा पंडित वाजपेयी को लिखा गया पत्र (पत्रांक 746/गो0, दिनांक 8 अप्रैल 2008 ईस्वी।
(10) पंडित अनूप कुमार वाजपेयी : विश्व की प्राचीनतम सभ्यता (Historical & Archaeological facts)
प्रकाशक : समीक्षा प्रकाशन, दिल्ली/मुजफ्फरपुर
आईएसबीएन : 978-93-87638-12-9
(11) झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का वक्तव्य से सम्बन्धित देवघर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र प्रभात खबर का कतरन, दिनांक : 23 दिसम्बर, 2020 ईसवी, पृष्ठ संख्या : 2
(12) सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका के कुलपति प्रो0 डॉ0 एम0 बशीर अहमद खान के निर्देश पर इस विश्वविद्यालय के संताल कल्चर एंड म्युजिअम के कॉडिनेटर डॉ0 अमरनाथ झा द्वारा पुरातत्त्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी को लिखा गया अनुरोध-पत्र
(13) अखिल भारतीय अंगिका साहित्य मंच के महानिदेशक श्रीस्नेही द्वारा दिनांक 1 नवम्बर, 2000 ईसवी को पंडित अनूप कुमार वाजपेयी की आगन्तुक-पंजी में लिखा गया मंतव्य।
Ang Prasang | सुप्राचीन "अंग सभ्यता" की खोज की दिशा : एक अध्ययन | by जीवन ज्योति चक्रवर्ती | Angika.com
सुप्राचीन "अंग सभ्यता" की खोज की दिशा : एक अध्ययन
- लेखक -
जीवन ज्योति चक्रवर्ती
शोधार्थी, इतिहास विभाग,
सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय,दुमका (झारखण्ड)
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