राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन और पांडुलिपि संसाधन केंद्र पटना की खोज कारगर साबित होती दिख रही है। देशभर के करीब 22 राज्यों में दुर्लभ पांडुलिपियों को खोज
कर उसे संरक्षित करने का अभियान चलाया जा रहा है। इस क्रम में सूफियों के गढ़ भागलपुर में सर्वाधिक सोने की पांडुलिपियां मिली हैं। रख-रखाव के अभाव में
इनकी स्थिति जर्जर होती जा रही है।
करीब 434 वर्ष पूर्व के आस्ताना शहबाजिया में खोज के दौरान अबतक की सबसे पुरानी 576 वर्ष पूर्व की अरबी में लिखी बुखारी शरीफ मिली। इसके अलावा सोने
के पन्ने पर अबु फजल फैजी द्वारा लिखा गया अकबरनामा और 312 वर्ष पूर्व मुर्शीदाबाद के नवाब द्वारा भेजा गया सुनहरा कुरान शरीफ संसाधन केंद्र के
अधिकारियों के आकर्षण का केंद्र बना। भागलपुर के शाह मार्केट स्थित पीर दमड़िया की लाइब्रेरी से भी कई दुर्लभ सुनहरी पांडुलिपियां मिलीं। मुगल बादशाह जहांगीर
के समय की सोने के पन्ने पर उकेरी गई कई बादशाहों की तस्वीर वाली दुर्लभ पांडुलिपि मिली। भागलपुर में फारसी और अरबी भाषा के अलावा अंगिका, कैथी,
संस्कृत और अवधि भाषा की पांडुलिपियों के साथ देवनागरी, नस्तालिख और खते नस्ख लिपि की भी पांडुलिपियां मिली हैं। स्वर्ण पांडुलिपियां केवल अरबी और
फारसी में ही मिली हैं।
भागलपुर शुरू से ही सूफी-संतों का शहर रहा है। कई मुगल बादशाह भी भागलपुर आए। खानकाहों में उनकी हाजिरी जरूर होती थी। बादशाह खानकाहों से खत व
किताबत भी करते थे। मधुर संबंध होने के कारण तहरीरों का भी आदान -प्रदान होता रहता था। मुगल बादशाह शाह शूजा भागलपुर में रहकर बंगाल तक की
बागडोर संभाले हुआ था। उस समय के खानकाहों के सज्जादानशीं न केवल देशभर के खानकाह और बादशाह से संबंध रखते थे बल्कि विदेशी खानकाहों और
मदरसों से भी संबंध रहते थे। अधिक संबंध रहने पर पत्राचार भी ज्यादा होते थे। अभी खोज जारी है।
राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी पांडुलिपियों की खोज की जा रही है ताकि उनका संरक्षण सही से किया जा सके। बिहार के अलावा उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात,
महाराष्ट्र, असम, मणिपुर, पश्चिमी बंगाल, मध्यप्रदेश, हैदराबाद और पंजाब समेत करीब 22 राज्यों में इसकी खोज की जा रही है। इस दौरान राष्ट्रीय पांडुलिपि
मिशन और पांडुलिपि संसाधन केंद्र को बिहार के भागलपुर के अलावा गया के खानकाह, खुदा बख्श लाइब्रेरी, इंडियन म्यूजियम कोलकाता में बौध धर्म से संबंधित
स्वर्ण पांडुलिपि, रामपुर लाइब्रेरी उत्तरप्रदेश से और गुरु गोविंद सिंह की जन्म स्थली पटना से स्वर्ण पांडुलिपियां मिली हैं। गया के म्यूजियम से अकबरी दरबार के
अबु फजल फैजी की लिखी आइने अकबरी मिली है।
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन और पांडुलिपि संसाधन केंद्र पटना, संग्रहालय पटना के सर्वेयर डॉ. अमिताभ रंजन और निशांत कुमार का मानना है कि कभी भागलपुर
सूफियों का गढ़ था। कई मुगल बादशाह भी भागलपुर आए। बादशाहों का लगाव खानकाहों से हुआ करता था। यही वजह है कि भागलपुर में मिलीं अधिकांश स्वर्ण
पांडुलिपियां मुगल काल की ही हैं।
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भागलपुर में फरवरी 2012 से पांडुलिपियों की खोज की जा रही है। विगत नौ महीने में करीब 2000 स्वर्ण और साधारण कई भाषाओं में पांडुलिपियां मिली हैं।
खोजी गई पांडुलिपियां :
भगवान पुस्कालय–540
विवि. केंद्रीय पुस्तकालय–489
पीर दमड़िया की लाइब्रेरी–447
आस्ताना शहबाजिया–430
कमर आलम कबीरपुर–63
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ऐसी दुर्लभ पांडुलिपियों को अगर संरक्षित नहीं किया गया तो यह अपना वजूद खो देंगी। अभी खोज की शुरुआत हुई है। नौ महीने में करीब 2000 पांडुलिपियां
मिली हैं। आस्ताना शहबाजिया और पीर दमड़िया की लाइब्रेरी में हजारों पांडुलिपियां मिलने की उम्मीद है। वर्षो से इसके रख-रखाव पर ध्यान नहीं देने के कारण
इनकी स्थिति जर्जर हो गई।
-डॉ. अमिताभ रंजन और डॉ. निशांत कुमार, राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन व पांडुलिपि संसाधन केंद्र
: कामरान हाशमी, भागलपुर
Source : http://www.jagran.com/bihar/bhagalpur-9840658.html